इसमें कोई दो राय नहीं है कि इतिहास की सबसे बड़ी खोज ‘पहिया’ है। एक पहिया ने पूरे विश्व को घुमा दिया। परंतु बिजली को भी कम महत्वपूर्ण खोज नहीं मान सकते। न सिर्फ घरों को रोशन किया बल्कि उद्योग जगत को ऐसी ताकत प्रदान की कि आज बिना बिजली कुछ संभव ही नहीं है। परंतु सबसे मजेदार बात यह लगती है कि एक बटन से भी छोटी चीज, ग्राम दो ग्राम के वजन के साथ बिजली पैदा करती है और महीनों तक घड़ी या किसी खिलौने को चलने की ताकत प्रदान करती है। मोबाइल को देख कर भी आपको जादू सा नहीं लगता? छोटी सी बैटरी के बल पर मोबाइल क्या-क्या नहीं कर पाया। चलिए आज इसी बैटरी को बनने की कहानी जानते हैं। कैसे बड़ी सी बैटरी के बाद पोर्टेबल लिथियम बैटरी का जन्म हुआ।
क्या है बैटरी
बिजली उत्पादन के कई श्रोत हैं इनमें से ही एक है बैटरी। हालांकि जो बिजली, पावर हाउस या घर पर वायर कनेक्शन के जरिए आती है वह बैटरी की बिजली से अलग है। घर में बिजली आती है उसे ‘AC’ यानी की ‘अल्टर्नेटिव करेंट’ कहते हैं। जबकि बैटरी के माध्यम से ‘DC’ यानी की डायरेक्ट करेंट आता है। एसी में उच्च वोल्टेज के लिए जाना जाता है और यह यह चक्रनुमा प्रवाह में चलता है। अर्थात उपर उठता है, नीचे गिरता है और फिर उपर उठता है। यह चक्र लगातार चलता रहता है। इसलिए जब आप किसी बल्ब को दूर से देखेंगे तो ऐसा लगेगा जैसे वह टिमटिमा रहा है। इसे भी पढ़ें: ब्रांड Samsung की अनकही कहानी: जानें कैसे बना ट्रेडिंग कंपनी से विश्व का नंबर एक मोबाइल निर्माता!
जबकि इससे अलग डीसी का उपयोग साधारणतः कम वोल्टेज क्षमता वाले डिवाइस के लिए होता है। इसमें बिजली एक समान प्रवाह में चलती रहती है। इसलिए बैटरी से बिजली प्रवाह को हमेशा एक सीधी लाइन से ही दिखाते हैं।
बैटरी के प्रकार
बैटरी कई तकनीक और स्वरूप है। हर उपकरण के लिए आज लगभग अलग प्रकार के बैटरी का उपयोग किया जाता है। छोटे डिवाइस के लिए छोटी बैटरी जिसका उपयोग टाॅर्च, कैमरा और रेडियो सहित कई चीजों के लिए किया जाता है। वहीं बड़े उपकरणों के लिए बड़ी बैटरी होती है। जैसे गाड़ी, इनवर्टर आदि।
परंतु इन सबसे अलग हैरानी हैंड वॉच और छोटे खिलौनो में लगे बैटरी को देखकर होती है। बटन से भी छोटे आकार के ये बैटरी लंबे समय तक पावर बैकअप देने में सक्षम होते हैं। हालांकि जहां बड़ी बैटरियां रिचार्जेबल होती हैं। वहीं ये बटन आकर वाली बैटरियां एक बार उपयोग के बाद ही खत्म हो जाती हैं। इसे भी पढ़ें: जानें क्या है रिफ्रेश रेट, 90 हर्ट्ज और 120 हर्ट्ज रिफ्रेश रेट डिसप्ले के क्या हैं फायदे
इसी तहर लैपटॉप में एक अलग तरह के और मोबाइल के लिए एक अलग तरह के बैटरी का उपयोग होता है। यहां एक बात बताना जरूरी है कि भले ही कोई बैटरी रिचार्जेबल हो और कोई सिंगल यूज के लिए परंतु सबकी लाईफ होती है और वह एक समय के बाद खराब होता ही है।
सूखा सेल और गीला सेल
बनावट के आकार को छोड़ दें तो साधारणत: बैटरी दो प्रकार के होते हैं। एक सूखा सेल और दूसरा गीला सेल। दोनों में रसायन का ही उपयोग होता है और दोनों सेल अम्ल से ही बिजली का उत्पादन करते हैं लेकिन तरीका बदल जाता है। सुखा सेल उपयोग खत्म होने के बाद कोई काम का नहीं होता है। जबकि पानी सेल को पुनः निर्माण कर उपयोग में लाया जा सकता है। इसे भी पढ़ें: एक बार हमारी सुनें ताकी बाद में भी आप सुन सकें!
अगर हम बात मोबाइल की करते हैं तो यहां एक अलग तकनीक का उपयोग किया जाता है। यह सूखा सेल ही है लेकिन यह लिथियम-आयन और लिथियम-पॉलिमर से बना होता है।
कब हुआ बैटरी का आविष्कार
बैटरी के निर्माण का पहला श्रेय जाता है इटली के भौतिकविद् एलेसानड्रो वोल्टा (Alessandro Volta) का। सन 1792 में उन्होंने पहली बार इलेक्ट्रोकैमिकल सेल का परिक्षण किया और और 1800 ईसवी में उन्होंने पहली बैटरी का निर्माण भी किया। उस वक्त उसे ‘वोल्टाइक पाइल’ के नाम से जाना गया। हालांकि इसने यह तो दिखा दिया था कि कैमिकल के उपयोग से बैटरी का निमार्ण किया जा सकता है लेकिन यह बहुत सफल प्रयोग नहीं था।
सन 1836 में इस प्रयोग में नई जान फूंकने का काम किया जाॅन फ्रेडरिक डेनियल (John Frederic Daniell) ने। उन्होंने बीजली उत्पादन के लिए जिंक सल्फेट और काॅपर सल्फेट का उपयोग किया गया था। कम वोल्ट की यह बैटरी लंबे समय तक बिजली उत्पादन में सक्षम थी और इस सेल का नाम ‘डेनियल सेल’ दिया गया। इस सेल का बड़े पैमाने पर उपयोग उस वक्त अमेरिका के टेलीफोनी सेवा के लिए होने लगा।
इस प्रयोग के बाद बैटरी निर्माण प्रकिया में छोटे—छोटे सुधार किए गए जो कि काफी अहम साबित हुए। एसी ही एक छोटी से कोशिश थी गेस्टन प्लानटे (Gaston Planté) उन्होंने 1859 में पहली बार रिचार्जेबल बैटरी का निमार्ण किया। 1860 में भी एक अहम प्रयोग सामने आया। फ्रांस के एक वैज्ञानिक मॉनसियोन क्लाउड (Monsieur Callaud) ने डेनियल सेल का नया प्रारूप पेश किया। इसे ‘ग्रैविटी सेल’ का नाम दिया गया और यह पहले से ज्यादा कॉम्पैक्ट हो गया।
1866 में फ्रांस के ही दूसरे वैज्ञानिक जॉर्जस् लेक्लांचे (Georges Leclanché) ने पहली बार एनोड और कैथोड आधारित सूखा सेल का निर्माण किया। वहीं 1881 में कार्ल गसनेर (Carl Gassner) ने इसी तकनीक पर कई दूसरी तरह के बैटरी का निर्माण किया और उस पर जर्मन पेटेंट भी प्राप्त कर लिया। साथ ही साथ उन्होंने बैटरी की मास प्रोडक्शन शुरू कर दी। अब बैटरी आम लोगों के लिए भी उपलब्ध हो गया। इसी तरह 1899 में स्वीडन के वैज्ञानिक वेल्डरमार जंगनर (Waldermar Jungner) ने निकल कैडियम बैटरी का निर्माण किया गया।
थॉमस एडिशन (Thomas Edison) का नाम कौन नहीं जानता। उन्होंने ने भी इस क्षेत्र में अपना योगदान दिया है। 1903 में उन्होंने निकल—आयरन सेल के साथ अल्काइन सेल का नया प्रयोग पेटेंट कराया जो काफी लोकप्रिय हुआ। इसमें अल्काइन एनोड और निकल ऑक्साइड कैथोड के रूप में काम करता था। इसमें पोटैशियम क्लोडराइड का भी उपयोग किया गया था। इस बैटरी का उपयोग मुख्य रूप से ऑटोमोबाइल के लिए किया गया। जिंक कार्बन बैटरी में 1955 में काफी सुधार किया गया और आज की बैटरी उसी सुधार के साथ उपलब्ध है। इस सुधार का श्रेय जाता है इंजीनियर ल्विस यूरे (Lewis Urry) को।
कब आया लिथियम ऑयन बैटरी
लिथियम बैटरी का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। इसे आधुनिक बैटरी भी कहा जाता है। सबसे पहले इसका प्रयोग यूके के वैज्ञानिक, स्टेनली वेटिंघम (Stanley Whittingham) ने किया था। 1970 में तेल समस्या से जब पूरा विश्व जूझ रहा था। उस वक्त वे एक्सॉन मोबाइल में काम कर रहे थे और उन्होंने उस वक्त रिचार्जेबल बैटरी को लेकर नया प्रयोग दिखाया था। इसके लिए उन्होंने टाइटेनियम और लिथियम मैटल का उपयोग किया था। हालांकि यह बहुत सफल नहीं रहा। परंतु 1980 में यूएस के वैज्ञानिक जॉन बी गुडइनफ (John B. Goodenough) ने इस प्रयोग को आगे बढ़ाया और टाइटेनियम के जगह लिथियम कोबाल्ट ऑक्साइड का उपयोग किया जो पुराने प्रयोग से दोगुनी पावर सप्लाई में सक्षम था।
5 साल बाद इसमें एक और प्रयोग किया गया और यह किया गया जापान के वैज्ञानिक एकीरा योशिनो (Akira Yoshino) द्वारा। उन्होंने पहली बार आधुनिक लिथियम बैटरी का प्रोटोटाइप पेश किया। यहीं से लिथियम आयन बैटरी के इतिहास में नया अध्याय जुड़ गया। इस प्रयोग पर पहली बार कमर्शियल लिथियम आॅयन बैटरी का निर्माण 1991 में सोनी और असाही कैसेई द्वारा मिलकर किया गया और इस डेवलपमेंट टीम का नेतृत्व कर रहे थे योशिओ निशि (Yoshio Nishi)।
रही बात लिथियम पॉलिमर बैटरी की तो यह लिथियम आयन का ही पार्ट है। हमारी जानकारी के अनुसार इसका उपयोग पहली बार 1997 में हुआ था और इस बैटरी का भी निर्माण सोनी और असाही कैसई कंपनी द्वारा मिलकर ही किया गया था।
आपको यह जनना भी जरूरी है कि 2019 में रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार लिथियम ऑयन बैटरी निर्माण के लिए ही स्टेनली वेटिंघम, जॉन बी गुडइनफ और एकीरा योशिनो को दिया गया था।
क्या है लिथियम आयन बैटरी
लिथियम ऑयन बैटरी रिचार्जेबल बैटरी श्रृंखला का ही एक कड़ी है। यह पोर्टेबल बैटरी है जो जल्दी चार्ज होने और हाई कपैसिटी पावर देने में सक्षम है। छोटा आकार और ज्यादा पावर के साथ ही, लंबे समय तक चार्ज रहना भी इसकी बड़ी खासियत है। यह डबल ए बैटरी के समान ही है जिसमें तीन भाग होते हैं। एक कोबाल्ट ऑक्साइड पोजेटिव इलेक्ट्रोड होत है जिन्हें हम कैथोड भी कहते हैं और दूसरा ग्रेफाइड कार्बन नेगेटिव इलेक्ट्रोड जिन्हें एनोड कहा जाता है। कैथोड धनात्मक (पोजेटिव) पावर है जबकि एनोड रिनात्मक (नेगेटिव) पावर है। जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि इसमें तीन भाग होते हैं। तो तीसरा भाग इन दोनों को अलग रखने का काम करता है। तकनीकी रूप से ये दोनों कैथोड और एनोड इलेक्ट्रोलायट कैमिकल के अंदर होते हैं। अर्थात एक ही केमिकल के बॉक्सा या थैली में इन्हें रखा जाता है लेकिन साथ नहीं बल्कि इन्हें अलग—अलग होते हैं। इन्हें अलग करने के लिए स्ट्रिप, इन्सूलीन टेप या फिर रबर टेप का उपयोग किया जाता है।
बैटरी जब चार्ज होता है तो आयन कैथोड से एनोड की ओर प्रवाहित होते हैं और इलेक्ट्रोकैमिकल को एक्टिव कर पावर को स्टोर करते हैं। इसी तरह जब बैटरी प्रयोग में होता है तो आयन एनोड से कैथोड की ओर प्रावाहित होते हैं। इस तरह फोन में पावर स्पलाई होती है और बैटरी डिस्चार्ज होता है। इस तरह लिथियम आयन बैटरी काम करते हैं। बोल चाल की भाषा में इसे Li-ion बैटरी भी कहते हैं।
रही बात लिथियम पाॅलिमर बैटरी की तो यह भी समान तकनीक है। इसमें लिथियम के साथ ठोस पाॅलिथिन ऑक्साइड या पाॅलिएक्राॅनलियोनिट्रील का उपयोग किया जाता है। लिऑन बैटरी के समान यह भी छोटे से पैकेज में बनाया जा सकता है और उपयोग में आसान भी होता है। साधारणतः बोल चाल में इसे Li-po बैटरी के नाम से जाना जाता है।
mAh
बैटरी लिथियम आयान हो या लिथियम पाॅलिमर। परंतु दोनों तकनीक में mAh की प्रयोग जरूर होता है। आप जानते हैं यह mAh क्या है?
वास्तव में एमएएच इसके ताकत को मापने का पैमाना है। बैटरी पावर को एम्पियर आवर के माध्यम से मापा जाता है और छोटे डिवायस में चार्ज के लिए मिली एम्पियर आवर को पैमाना बनाया जाता है। mAh का आशय है मिली एम्पियर आवर। 1 मिली एम्पियर आवर एक एंपियर आवर का एक हजारवां भाग है। अर्थात 1 एम्पियर आवर = 1000 मिली एम्पियर। इस तरह एक बैटरी जितना ज्यादा एमएएच का होगा वह उतना ज्यादा बैटरी बैकअप देने में सक्षम होगा।
कार में भी उपयोग होता है लिथियम बैटरी
लिथियम बैटरी का नाम सुनते ही आप छोटे से बैटरी के बारे में सोचते होंगे जो मोबाइल और कैमरा सहित छोटे डिवाइस में उपयोग किया जाता है। परंतु आपको बता दूं कि अब इलेक्ट्रिकल कार में भी लिथियम बैटरी का उपयोग होने लगा है। टेसला जैसे नामी ब्रांड इसका उपयोग शुरू कर चुके हैं।