एक बार हमारी सुनें ताकी बाद में भी आप सुन सकें!

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इसमें कोई दो राय नहीं है कि म्यूजिक तनाव को कम करता है और आप खुश मिजाजी के साथ काम करते हैं। आॅफिस हो या घर, रास्ते में हों या फिर खेल के मैदान में कानों में ईयर फोन लगा ही होता है। बस मोबाइल का बटन दबाया और म्यूजिक की मस्ती में खो गए। परंतु कहते हैं न जहां सावधानी हटी दुर्घटना घटी। म्यूजिक के साथ भी कुछ ऐसा ही सुनने को मिलता है। रास्ते में हेडफोन लगाकर संगीत सुनने के चक्कर में कई लोग जान गवां चुके हैं और यह सिलसिला अब भी जारी है। वहीं इसके अलावा ड्राइविंग के दौरान हेडफोन का उपयोग वर्जित है लेकिन फिर भी लोग नहीं मान रहे हैं। ये सारी बातें आप रोज सुन रहे होंगे और इस पर अपनी प्रतिक्रिया भी दे रहे होंगे। परंतु अब मैं जो बताने जा रहा हूं वह इससे कहीं अलग और ज्यादा भयावह है।

कुछ माह पहले आए डब्ल्यूएचओ (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन) की एक रिपोर्ट में मोबइल हेडफोन और इससे होने वाले नुकसान का खुलासा किया गया है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मोबाइल हेडफोन की वजह से वजह विश्व भर में 1.1 बिलियन लोगों पर बहरेपन का खतरा मंडराने लगा है। यानि कि आज वो सुन रहे हैं लेकिन कल सुनने के लायक नहीं रहेंगे। इसे भी पढ़े: Jio यूजर घर बैठे कमाएं पैसा, यहां देखें पूरा तरीका

क्यों डरा रहा है रिपोर्ट
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इस रिपोर्ट को पढ़कर आपको थोड़ा डर जरूर लगा होगा। परंतु इससे कहीं ज्यादा डरावनी बातें आगे कही गई हैं। सबसे ताज्जुब की बात है कि हेडफोन से सबसे ज्यादा खतरा युवाओं को है बड़े-बुजुर्गों को नहीं। आज का युवा टेक का दीवाना है और यही दिवानगी उसे मुश्किलों की ओर धकेल रही है। रिपोर्ट में न्वाइस पॉल्युशन के प्रति लोगों को अगाह किया गया है। इसमें कहा गया है कि तेज आवाज की वजह से विश्व भर के 1.1 बिलियन से ज्यादा आबादी पर बहरेपन का खतरा मंडरा रहा है और इस खतरे के दायरे में सबसे ज्यादा बच्चे और युवा हैं जिनकी आयु 12 साल से लेकर 35 साल तक की है। वहीं कारण का जिक्र करते हुए कहा गया है कि बढ़ते बहरेपन का कारण तेज आवाज में म्यूजिक सुनना है। इसे भी पढ़े: अपने एंड्रॉयड फोन से कैसे करें डिलीट फोटो और वीडियो रिकवर

नियमों की हो रही अनदेखी
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मोबाइल या म्यूजिक प्लेयर पर जब आप गानें सुनते हैं तो आवाज तेज करने पर एक मैसेज द्वारा यूजर को सुचित किया जाता है लेकिन बावजूद इसके हम नहीं मानते। इस बात का जिक्र भी डब्लूएचओ की रिपोर्ट में है। कहा गया है कि लगभग 50 फीसदी युवा जो अपने पर्सनल म्यूजिक सिस्टम पर गाने सुन रहे होते हैं उन्हें आवाज तेज करने पर सुचित किया जाता है कि यह काफी असुरक्षित है। बावजूद इसके वह नहीं मानते और लाउड म्यूजिक सुनते हैं। इतना ही नहीं बढ़ते बहरेपन का कारण क्लब और नाइट पार्टी​ज भी बन रहे हैं। लगभग 40 फीसदी क्लब और नाइट पार्टी में साउंड का लेबल इतना ज्यादा होता है कि वह सीधे तौर लोगों के कानों पर असर करती हैं। इसे भी पढ़े: जानें एलईडी, ओएलईडी, एमोलेड और पीओएलईडी डिसप्ले टेक्नोलॉजी के बारे में सबकुछ

क्या हेडफोन हो सकता है बहरेपन का कारण?
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इन बातों को जानने के बाद आप यही कहेंगे कि म्यूजिक कैसे बहरेपन का कारण हो सकता है। तो मैं बता दूं कि आवाज को सुनने की भी आपकी एक क्षमता है। अर्थात एक सीमा तक ही तेज आवाज सुन सकते हैं। वहीं दूसरी ओर एक तय समय तक ही किसी आवाज को सुना जा सकता है। यदि तेज आवाज को तय समय से ज्यादा देर तक सुना जाए तो जाहिर है आप बहरेपन का न्योता दे रहे हैं। चाहें आप म्यूजिक हेडफोन पर सुनें या फिर लाउडस्पीकर पर साउंड की क्षमता को ध्यान रखना जरूरी है।

किस आवाज को कितनी साउंड और कितनी देर तक सुनें?
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वैसे तो हमारे सेंसेंस ही किसी आवज की सीमा को बता देते हैं और आपको अहसास करा देते हैं कि अब इससे ज्यादा ना करों। परंतु वैज्ञानिक पैमानें का भी जिक्र मैं यहां कर ही देता हूं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आवाज को मापने के पैमानें को डेसिबल कहा गया है।

साधारण आवाज में जब आप बात—चित करते हैं तो वह लगभग 60 डेसिमल पर होता है। यह कानों के लिए सबसे सुरक्षित साउंड है। इसमें आप घंटों बातें कर सकते हैं कोई नुकसान नहीं है। परंतु जब आप साधारण साउंड के साथ म्यूजिक सुनते हैं तो वह 85 डेसिमल पर होता है और उसमें आप अधिकतम 8 घंटे तक का गाने सुन सकते हैं। 60—85 डेसिमल तक एक तरह से आप सुरक्षित ज़ोन में हैं।

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कई लोग बुलेट बाइक के फैन हैं। परंतु वे भी ज्यादा देर बाइक चलाकर कानों को नुकसान ही पहुंचाते हैं। भारी आवाज वाली बाइक से 95 डेसिमल तक की साउंड आती है और उसे अधिकतम 50 मिनट तक ही सुना जा सकता है। इससे ज्सादा सुनने से कान खराब होने का खतरा बढ़ जाता है।

पब या नाइट क्लब में जो आप साउंड सुनते हैं वह लगभग 110 डेसिमल तक की होती है। वहीं हेडफोन में फुल वॉल्यूम पर 105 डेसिमत तक की आवाज आती है। इसे अधिकतम 1.30 मिनट तक सुना जाना ही सुरक्षित है। वहीं 105 डेसिमल में 6 मिनट के बाद ही कान थक जाते हैं। अब आप सोच सकते हैं कि कितना नुकसान अपने शरीर का करते हैं।

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इसी तरह सड़क बनाने के लिए जैकहैमर का उपयोग होता है जिसे आप ड्रिल मशीन भी कहते हैं की आवाज कितनी कर्रकस होती है। आपको बता दूं कि इससे 130 डेसिमल तक की साउंड आती है और इस आवाज को अधिकतम एक सेंकेंड तक सुन ही सुना जा सकता है। इससे ज्यादा सुनना खतरनाक है। पटाखों से जो आवजा आती है वह 150 डेसिबल के बराबर होती है और इस आवाज को एक सेकेंड सुनना भी मुश्किलें बढ़ा सकती हैं। कुछ सेकेंड में ही बहरा हो सकते हैं।

अब आप समझ सकते हैं कि रोजमर्रा की जिेंदगी में आप अपनी कानों के साथ कितना खिलवाड़ करते हैं।

क्यों सुनते हैं तेज़ गाने
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ज्यादातर लोग यही चाहते हैं कि म्यूजिक सुनने के दौरान कोई बाहरी आवाज उन्हें परेशान न करे। यही वजह है कि वे साउंड को तेज कर देते हैं। साधारणत: आउटडोर में या यूं कहें कि खुले माहौल में लगभग 80 डिसेबल साउंड होता और बाहरी आवाज को रोकने के लिए लोग हेडफोन या ईयरफोन की आवाज को तेज कर देते हैं। यह आवाज 90 डेसिबल के उपर हो जाता है और फिर परेशानी का शबब बन जाता है।

कैसे करें बचाव
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अब तक आप समझ गए होंगे कि परेशानी म्यूजिक से नहीं ​है बल्कि तेज साउंड से है। इसलिए आप सजगता से इसका बचाव कर सकते हैं।

इसके लिए जरूरी है कि आप कम साउंड में म्यूजिक सुनें। वहीं म्यूजिक सुनने के दौरान सूचना की अनदेखी कभी न करें। यदि बाहरी आवाज से परेशानी है तो न्वाइस कैंसलेशन वाली हेडफोन चुनें तो जदा बेहतर है। यदि नाइट क्लब और पब में लाउड म्यूजिक सुन रहे हैं तो बीच—बीच में बाहर निकलकर विराम लें तो ज्यादा बेहतर है।

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